भगवान श्री राम की मानवीय लीलाओं पर आधारित पुस्तक “मेरी अयोध्या मेरा रघुवंश” एक ऐसी अद्भुत रचना है जो प्रभु श्री राम के चरित्र को प्रभु राम के ही नज़रिए से पाठकों तक पहुंचाने का अप्रतिम प्रयास करती है और पाठको को आनंदित कर देती है।
इस पुस्तक में लेखक राजीव आचार्य ने जो शब्दों के मोतियों को पिरोया है वह निश्चित ही अद्भुत और अद्वितीय है। प्रभु श्री राम के नजरिये से उनका जीवन देखना निश्चित ही कुछ नया है। श्री रामजन्म से लेकर उनकी तपोवन की यात्रा , पंचवटी प्रवास , बाली वध आदि उनका पराक्रम उनका संयम जिस प्रकार चित्रित किया गया है वह पाठको के लिए निश्चित ही रोचक होगा। रामायण के पात्रों का चित्रण एवं दृश्यों की परिकल्पना से ऐसा लगता है जैसे ये रचना रामचरित को हमे दिखा और सुना रही हो।
प्रभु श्री राम के चरित्र पर सबके अपने अपने मत हैं अपनी अपनी राय है , जिसके आधार पर अनेको रामगाथा पर आधारित उपन्यास हैं जिसमे प्रभु श्री राम के चरित्र को सामाजिक दृष्टिकोण से समझना तो आसान होता है परन्तु प्रभु श्री राम के उन निर्णय एवं उन परिस्थितियों व व्यथा को समझ पाना एवं उस व्यथा को महसूस कर पाना सभी के लिए संभव नहीं हो पाता है। लेखक राजीव आचार्य की पुस्तक “मेरी अयोध्या मेरा रघुवंश” सभी को ह्रदय से जोडती है एवं अलग बनाती है। इस पुस्तक के माध्यम से प्रभु श्री राम के श्रीमुख से उनके नज़रिए से उस व्यथा को लोगो को महसूस करा पाने में सफल होती है जो अब तक का शायद प्रथम प्रयास होगा ।

इस उपन्यास के द्वारा लेखक ने दूसरे पहलू को भी उजागर करने की कोशिश की है। उम्मीद है यह रचना कुछ लोगो के दृष्टिकोण को बदलने में सफल हो सकती है, जो उस भाव को व्यक्ति विशेष के स्थान पर रख कर सोच नही पाते। पाठकों के लिए यह रचना सनातन संस्कृति से अवगत कराने का सटीक जरिया है और उस संस्कृति से आज की पीड़ी को जोड़ना उन्हें उसके महत्व को समझाना आवश्यक भी है और कठिन भी।आज की पीड़ी को उस युग से जोड़ पाना एक बहुत मुश्किल काम है। नयी पीड़ी को उस युग और उन घटनाओं से अवगत कराने के लिए हमारे ग्रन्थ कुछ जरिये है परन्तु उन ग्रंथों को हर एक के लिए पढ़ पाना हमेशा सम्भव नहीं हो सकता है। ऐसे में इस प्रकार के उपन्यास आज के समय में एक ज़रूरत भी हैं और एक कड़ी भी।
उपन्यास में अधिकांशतः वर्णन कथनों के रूप में है जो इसे और अधिक रोचक बनातें है। ताड़का वध के समय आपस के संवाद, अहिल्या उद्धार का वर्णन , शबरी का प्रेम , प्रभु श्रीराम का जानकीजी के वियोग का वर्णन आदि इस पुस्तक को अन्य सभी उपन्यासों से भिन्न कर देता है। उस समय के संवाद को कथानक के माध्यम से जिस प्रकार प्रस्तुत किया गया है वह पाठकों को उपन्यास से जोड़ता चलता है और परिदृश्यों को कल्पना में बदलने में समय नहीं लगता। इसके साथ ही आसपास के वातावरण जैसी छोटी-छोटी सी कल्पनाओं को शब्दों का रूप देकर उन्हें उजागर करना एक विशेष पहलू है। सभी आत्म कथाएं अपने आप में सम्पूर्ण कृति होती हैं और भावों से परिपूर्ण होती है। “मेरी अयोध्या मेरा रघुवंश” प्रभु श्री राम पर आधारित आत्मकथा है जो पाठकों को शुरू से अंत तक जोड़ती है और पाठको को उस काल के अनुभव से भी जाने में सफल दिखाई देती है। एक बार इस उपन्यास को पढ़ना एक सही चयन होगा। पाठकों की उम्मीदों पर निश्चित ही खरा उतरेगा यह उपन्यास ।