कई बार कुछ रहस्यों कि जानकारी हमें पौराणिक कथाओं से ही मिलती है जिन्हें अगर कहानियों के रूप में प्रस्तुत किया जाए तो वह बेहद ही शानदार होता है। और यहीं कई बार हमें उन रहस्यों और सवालों के जवाब मिलते हैं। लेखक श्री अमरेश प्रसाद भंडारी की यह किताब एक ऐसी ही कृति है जो कई अनकहे पहलुओं को दिखाती है और पाठकों के सामने कई सारे रहस्यों को उजागर करती है जो सामान्यतः जानकारी में नहीं रहे हैं।
जैसे कि किताब के शीर्षक ‘मैं अश्वत्थामा बोल रहा हूँ’ से स्पष्ट है क यह किताब उस घटना पर आधारित है जिसे दुनिया कि सबसे महान घटनाओं में शामिल किया जाता है यानी कि – महाभारत का युद्ध। महाभारत के युद्ध की कई घटनाएँ हैं, कई अनकहे पहलू हैं जिन्हें उजागर करने की सफल कोशिश इस किताब में की गयी है। महाभारत, कई लोगों कि आस्था का प्रतीक है इसमें कई अन्य बातें है जो श्री कृष्ण की शिक्षाओं के साथ – साथ कई और ऐसे महान चरित्रों के माध्यम से हमे बहुत कुछ बतातीं हैं। प्रत्येक चरित्र अपने आप में एक कहानी बताता है और प्रत्येक पात्र चाहे वह धृतराष्ट्र हो या शकुनी, भीष्म पितामह हों या गुरु द्रोण, कौरव हो या पाण्डव, या फिर् हो ‘अश्वत्थामा’। हर पात्र अपने आप में पूर्ण है और हमें कुछ ना कुछ बताता है।
इस रचना के लेखक अमरेश प्रसाद भंडारी एक असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और उनके कार्यक्षेत्र की भाषा अंग्रेजी है लेकिन इस रचना के लिए हिंदी भाषा को चुनना सटीक निर्णय रहा है लेखक का। क्युकी महाभारत बिषय ऐसा है जो हमारी महान सनातन आस्था का प्रतीक है श्री कृष्ण ने जहाँ बिना शस्त्र उठाये पूरे युद्ध को अर्जुन को जिताया, कुरुक्षेत्र की महान घटना गीता का ज्ञान दिया।
रचनाकार लेखन कार्य के अलावा फेसबुक जैसे सोशल मीडिया में भी सक्रिय हैं और ‘द विजन’ एक यूट्यूब चैनल भी चलाते थे और कोविड-19 महामारी के शुरुआती दौर में एक तथ्यपरक जानकारी देकर समाज को जागरूक करते थे। तथा इसके निवारण से संबंधित वैज्ञानिक दृष्टिकोण। ढेर सारे वीडियो अपलोड करने के साथ ही वे वीडियो के माध्यम से विभिन्न मौजूदा ज्वलंत मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त करते रहे हैं. लेखक ने अनेक अवसरों पर कवि के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी है, जिसके कारण वे समय-समय पर अपनी कविताएँ फेसबुक पर पोस्ट करते रहते हैं!
रचनाकार वर्तमान झारखंड राज्य की पवित्र मिट्टी से संबंधित है, जो चांद भैरव और भगवान बिरसा मुंडा जैसे अमर स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। एक शिक्षक के रूप में विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के गोष्ठियों, वेबिनार आदि में अपने बहुमूल्य लेखों व वक्तव्यों के माध्यम से समाज में योगदान देने के साथ-साथ वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में तथा वर्तमान पुस्तक-निर्माता के माध्यम से अपने लेखन की पहचान छोड़ते रहे हैं। यह रचित काव्य का पहला भाग है।
इस रचना के लिए लेखक ने जो पात्र चुना है वह है गुरु द्रोण के पुत्र – अश्वत्थामा जो महाभारत का निश्चित ही एक मुख्य पात्र रहे हैं इस किताब में अश्वत्थामा के चरित्र का वर्णन किया गया है। लेखक ने बताया कि किस प्रकार एक महान योद्धा के रूप में महाभारत में उन्होंने भाग लिया एवं अपने माथे पर असहनीय पीड़ा को सहा। शांति कि तलाश में युगों – युगों तक भटकने की गाथा है ये रचना ‘मैं हूँ अश्वत्थामा’। वह खुद एक नकारात्मक पात्र है जो युद्ध में किये गए छल, अनेक कपटों की कहानी कहता है।
लेखक ने अपने तार्किक निष्कर्षों के माध्यम से बताया है कि महाभारत के अन्य पात्र जो अधर्म का युद्ध लड़े हैं, वे सभी दोषी हैं। लेखक की विश्लेषणात्मक शक्ति इस किताब में यह बताती है कि उस युद्ध में हुए महान विनाश और तबाही के लिए कौन – कौन जिम्मेदार है, चाहे वह भीष्म पितामह हों या गुरु द्रोण या धर्मराज युधिष्ठिर। कहानी के विषय के साथ साथ भाषा पर कुशल नियंत्रण रचना को काफी रोचक बनता है। महाभारत कि घटनाओं को उतनी ही समझदारी पूर्ण एवं सटीक रूप से बताना अपने आप में एक चुनौती है इस रचना में चीज़ों को देखने के दो पहलुओं को स्पष्ट रूप से बताया है लेखक ने।
अगर किताब के अर्थ को गहराई से समझ जाए तो इसमें सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है। यह किताब हमें अपने दायरे से बाहर निकल कर सोचने को प्रेरित करती है। कौरवों एवं पांडवों के जीवन के अतिरिक्त कुछ अनकहे पहलुओं को विस्तृत स्थान देकर इस किताब को एक नयापन दिया गया है। बेशक ही यह किताब पाठकों के लिए रोचक सिद्ध होगी।
वैसे तो कहानी का शीर्षक ही इसे अन्दर पढ़ने की इच्छा को और प्रबल कर देता है क्योंकि अश्त्थामा महाभारत का एक ऐसा चरित्र है, जो सही होते हुए भी अधर्म के लिए लड़ कर गलत हो जाता है जिसे समझना दोनों पहलुओं से आवश्यक है। लेखक की शैली किताब को सही मायने में रोचक बनती है। किताब को एक बार पढ़ना निश्चित ही सही निर्णय होगा। और निश्चित ही पाठकों द्वारा पसंद की जायेगी।